पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए 'पीएम-डिवाइन' योजना को मंजूरी
चर्चा में क्यों
पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए, एक नई योजना 'पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल' (पीएम-डिवाइन) को मंजूरी दे दी है. इस योजना को वर्ष 2022-23 से 2025-26 तक के लिए लागू किया गया है. इसे 15वें वित्त आयोग के शेष चार वर्षों के लिए मंजूरी दी गयी है.
इस योजना की मदद से पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को नई गति मिलेगी जिससे देश का नार्थ-ईस्ट रीजन भी विकास की मुख्य धारा में शामिल हो सकेगा. साथ ही रोजगार के नए अवसर बनेंगे जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन में स्थिरता आयेगी. इस योजना को पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय (डोनर) द्वारा क्रियान्वित किया जायेगा.
महत्वपूर्ण बिन्दु
· यह एक केंद्र प्रायोजित विकास योजना है, जो 100 प्रतिशत केन्द्रीय वित्त पोषण पर आधारित है. यह योजना नार्थ-ईस्ट रीजन के बुनियादी ढांचे के निर्माण, सामाजिक विकास परियोजनाओं, उद्योगों को पूर्ण सहयोग देंगी.
· साथ ही यह युवाओं व महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्रदान करेगी. इसे पूर्वोत्तर परिषद, केंद्रीय मंत्रालयों या एजेंसियों की मदद से डोनर मंत्रालय द्वारा लागू किया जायेगा.
· केन्द्रीय बजट 2022-23 में की गयी घोषणा: इस योजना को घोषणा केन्द्रीय बजट 2022-23 में की गयी थी. जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को एक नई गति देगा.
· 6,600 करोड़ का बजट: इस केन्द्रीय योजना पर 6,600 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. इसे 15वें वित्त आयोग के शेष चार वर्षों की अवधि के लिए लागू किया गया है. साथ ही इस योजना के लक्ष्यों को वर्ष 2025-26 तक पूरा करने का प्रयास किया जायेगा.
· इंजीनियरिंग-खरीद-निर्माण: धन की बचत और निर्माण जोखिमों को सीमित करने के लिए इसे इंजीनियरिंग-खरीद-निर्माण (EPC) के आधार पर लागू किया जायेगा.
· गौरतलब है कि बुनियादी ढांचे का विकास: इस योजना की मदद से नार्थ-ईस्ट रीजन में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का प्रयास किया जायेगा, जो पीएम गति शक्ति मेगा प्रोजेक्ट से प्रेरित है.
· सामाजिक विकास परियोजना: पीएम-डिवाइन का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्रों में चल रही सभी प्रकार की सामाजिक विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाना है साथ ही इनके क्रियान्वयन में कोई बाधा ना आये इस बात को सुनिश्चित किया जायेगा.
· रोजगार: पीएम-डिवाइन की मदद से नार्थ-ईस्ट रीजन में नए रोजगार के अवसर सृजित होंगे जिससे वहां के निवासियों को इसके लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा. साथ ही महिलाओं और युवाओं के लिए नये आजीविका के साधन का विकास किया जायेगा.
· देश की आजादी के बाद से ही भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास से वंचित रहा है. नार्थ-ईस्ट रीजन बुनियादी न्यूनतम सेवाओं (BMS) के संबंध में ये राज्य, राष्ट्रीय औसत पैरामीटर से काफी नीचे है. साथ ही यूएनडीपी, नीति आयोग, और एमडीओएनईआर द्वारा तैयार बीईआर जिला निरंतर विकास उद्देश्य (SDG) सूचकांक 2021-22 के अनुसार इन क्षेत्रों में गंभीर विकास अंतराल है. अतः इन सभी विशलेषण के आधार पर पीएम-डिवाइन योजना को शुरू किया गया है.
केन्द्रीय कैबिनेट ने मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट में संशोधन को मंजूरी दी
चर्चा में क्यों
· पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम (Multi-State Cooperative Societies Act-MSCS Act) में संशोधन को मंजूरी दे दी है.
· यह संशोधन मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटीज में बेहतर पारदर्शिता लाने और इनकी चुनावी प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए किया जायेगा. संशोधन अब संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए जाएंगे.
परिचय
मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटीज एक्ट, 2002 के माध्यम से एक से अधिक राज्यों में कार्यरत सहकारी समितियों में सुधार की पहल की गयी थी. मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटीज को संचालित करने के लिये MSCS अधिनियम 2002 पारित किया गया था. हालाँकि सहकारी समितियाँ संविधान के स्टेट लिस्ट में शामिल है.
महत्वपूर्ण बिन्दु
· इस अमेंडमेंट बिल के माध्यम से बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 में संशोधन किया गया है. इस अमेंडमेंट से अब भारत के सहकारी क्षेत्र में कई तरह के सुधार किये जा सकते है.
· इस अमेंडमेंट की जानकारी सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कैबिनेट बैठक के बाद दी है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इससे कारोबार सुगमता में सुधार किया जा सकता है. इस बिल में 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को शामिल किया जायेगा.
· गौरतलब है कि इसके अंतर्गत निम्नलिखित सुधार किये जायेंगे। जैसे -
· शासन सुधार: इस बिल में 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को शामिल किया जायेगा. भारत के सहकारी क्षेत्र में इसकी मदद से, शासन सुधार, निगरानी तंत्र में सुधार, चुनावी प्रक्रिया में सुधार, और साथ ही इनकी जवाबदेही बढ़ाने में मदद मिलेगी.
· संरचना सुधार: अब सहकारी क्षेत्र में बोर्ड की संरचना में सुधार और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी साथ ही सहकारी समितियों के लिए धन जुटाने में भी मदद मिलेगी.
· लोकतांत्रिक शासन: इसके अंतर्गत बहु-राज्य सहकारी समितियों के शासन को अधिक लोकतांत्रिक बनाया जा सकता है.
· सहकारी लोकपाल: इस संविधान संशोधन से सहकारी चुनाव प्राधिकरण, सहकारी लोकपाल, सहकारी सूचना अधिकारी और की स्थापना की जा सकती है.
· महिलाओं की भागीदारी: सहकारी समितियों के बोर्ड में महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अनिवार्य रूप से सुरक्षित सीटें रहेंगी.
· बिज़नेस की सुगमता: इन सुधारों से आने वाले समय में सहकारी क्षेत्र में कारोबार करने की आजादी मिलेगी.
· वर्तमान समय में भारत में लगभग 800,000 सहकारी समितियां कार्यरत है. जिनमे 1,600 मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी है. जो एक से अधिक राज्यों में कार्य करती है. इनमे बड़े नामों में इफको, नेफेड, कृभको (Kribhco) आदि शामिल है. जिसमे अधिकांश महाराष्ट्र (570), उत्तर प्रदेश (150) और नई दिल्ली (133) में है. भारत में लगभग 610 क्रेडिट सहकारी समितियां है. साथ ही कृषि आधारित 244 समितियां है.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वज़ाहत हुसैन ने संयुक्त अरब अमीरात में जीता शीर्ष पुरस्कार
चर्चा में क्यों
· अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक प्रमुख अकादमिक प्रोफेसर वजाहत हुसैन ने पारंपरिक, वैकल्पिक और पूरक चिकित्सा के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीता है।
·
प्रोफेसर
हुसैन अलीगढ़
मुस्लिम विश्वविद्यालय
(एएमयू) में
वनस्पति विज्ञान
विभाग के
एक सेवानिवृत्त
अध्यक्ष हैं,
जिन्हें जायद
चैरिटेबल एंड
ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक
कार्यक्रम में 10 अक्टूबर, 2022 को दूसरा
शेख जायद
अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
· वजाहत हुसैन को दो बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमे एक बार संयुक्त रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और आयुष मंत्रालय और फिर भारतीय वन्यजीव संस्थान और वन्यजीव विज्ञान विभाग, एएमयू द्वारा सम्मानित किया गया था।
महत्वपूर्ण बिन्दु
· पुरस्कार का उद्देश्य विश्व स्तर पर पारंपरिक पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा (टीसीएएम) के प्रसिद्ध शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों को मान्यता देना है।
· यह यूएई के टीसीएएम चिकित्सकों को टीसीएएम ज्ञान और प्रथाओं को बढ़ाने और मानवता के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में योगदान देने के लिए भी महत्व प्रदान करता है।
· गौरतलब है कि प्रोफेसर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में वनस्पति विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं।
· उन्होंने 1955 में B.Sc के छात्र के रूप में D.A.V कॉलेज देहरादून में प्रवेश लिया।
· 1985 में उन्हें यूनानी फार्माकोपिया समिति, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली का सदस्य नियुक्त किया गया।
· इसके अलावा, उन्हें आयुर्वेद सिद्ध, यूनानी तकनीकी सलाहकार बोर्ड (ASUTAB) स्वास्थ्य मंत्रालय; में स्थान मिला था।
पारम्परिक चिकित्सा से आप क्या समझते हैं?
· पारंपरिक चिकित्सा स्वदेशी अनुभवों और विचारों के लिए विशिष्ट ज्ञान, प्रथाओं और कौशल का योग है जो स्वास्थ्य के रखरखाव में उपयोग किए जाते हैं।
· वैकल्पिक या पूरक दवा स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं के एक व्यापक समूह को संदर्भित करती है जो किसी देश की अपनी परंपरा या पारंपरिक चिकित्सा का हिस्सा नहीं हैं और पूरी तरह से प्रमुख स्वास्थ्य प्रणाली में एकीकृत नहीं हैं।
रुपे पेमेंट सिस्टम की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए भारत कई देशों से कर रहा बातचीत
चर्चा में क्यों
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि आगे आने वाले समय में रुपे भुगतान प्रणाली वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिलेगी. उन्होंने कहा कि सिंगापुर और यूएई ने अपने देशों में रुपे भुगतान प्रणाली को स्वीकार करने में रूचि दिखाई है. साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विभिन्न देशों से रुपे भुगतान प्रणाली को शुरू करने के लिए बात कर रहा है. यह बात उन्होंने यूएस में एक कार्यक्रम में कही.
उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयास से भारत के रुपे पेमेंट सिस्टम को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलेगी. भारत के अपने पेमेंट सिस्टम यूपीआई, भीम ऐप और NCPI (नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) सभी अब इस तरह से काम कर रहे हैं कि हम इसको विश्व के अन्य देशों के साथ इंटर-ऑपरेबिलिटी की मदद से आगे बढ़ा सकते है.
महत्वपूर्ण बिंदु
· रुपे पेमेंट सिस्टम भारत की एक वित्तीय और भुगतान सेवा प्रणाली है जिसे 26 मार्च 2012 को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा लांच किया गया था. साथ ही यह सभी भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों में इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की सुविधा प्रदान करता है.
· रुपे डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, प्रीपेड कार्ड और सरकारी योजनाओं से जुड़े कार्ड प्रदान करता है. सरकारी योजना कार्डों में RuPay PMJDY, RuPay Mudra और RuPay PunGrain कार्ड और RuPay किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कार्ड शामिल हैं.
· रुपे ग्लोबल कार्ड: एनपीसीआई ने वर्ष 2014 में रुपे ग्लोबल कार्ड जारी किया था. सिंगापुर इसका भागीदार बनकर भारत के डिजिटल भुगतान नेटवर्क RuPay कार्ड को विदेशों में बढ़ावा देने में मदद कर रहा है.
· भारत सरकार लगातार वैश्विक स्तर पर अपने इस पेमेंट सिस्टम को प्रमोट करने के लिए प्रयासरत है जिससे भारत के रुपे पेमेंट सिस्टम की ग्लोबल पहुच मजबूत होगी.
· व्यापार में लाभ: रुपे पेमेंट सिस्टम के अन्य देशों द्वारा शुरू किये जाने की स्थिति में भारत के अन्य देशों के साथ व्यापार में मुद्रा के लेनदेन में आसानी होगी. जिससे भारत के मुद्रा की पहुँच और बढ़ेगी.
· अर्थव्यवस्था में लाभ: रुपे पेमेंट सिस्टम के ग्लोबलाइजेशन से भारत की अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ पहुंचेगा. जिससे भारत की करेंसी को भी काफी मजबूती मिलेगी.
· रुपे पेमेंट सिस्टम के विस्तार से विदेश में रह रहे भारतीयों के लिए भी इसका लाभ होगा. इसकी मदद से वे लोग आसानी से अपने पेमेंट को कर पाएंगे.
· अन्य ग्लोबल पेमेंट सिस्टम पर निर्भरता होगी कम: इसके बढ़ते उपयोग से विश्व के अन्य पेमेंट गेटवे पर भारत की निर्भरता कम होगी. साथ ही व्यापार में पेमेंट के लेन-देन में भी आसानी होगी.
भारत में रुपे पेमेंट सिस्टम का उपयोग:
· भारत में रुपे पेमेंट सिस्टम का चलन काफी बढ़ा है. रुपे के विभिन्न पेमेंट मोड की मदद से आज देश में इसका चलन काफी बढ़ गया है फिर ओ चाहे इसके विभिन्न प्रकार के डेबिट या क्रेडिट कार्ड हो या फिर PoS सिस्टम, इन सबका भारत में चलन बढ़ा है.
· रुपे कॉन्टैक्टलेस (टोकनाइजेशन): एनपीसीआई ने टोकनाइजेशन और मोबाइल आधारित पीओएस जैसी एडवांस पेमेंट सुरक्षा को पेश किया है, जिससे इस पेमेंट सिस्टम पर लोगों का और भरोसा बढ़ा है.
भारत-मालदीव संबंध
चर्चा में क्यों
हाल ही में मालदीव की अपनी पहली यात्रा के दौरान भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि ‘मालदीव सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भागीदारों में से एक है और मालदीव में तमाम विकास परियोजनाओं को भारत अपना समर्थन जारी रखेगा’. इसी भावना के तहत, अगस्त के महीने में नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह के लिए प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए भारत द्वारा मालदीव की कई ‘बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सहायता और उन्हें सुगम’ बनाने के लिए माले को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त क्रेडिट लाइन की मंजूरी दी गई.
महत्वपूर्ण बिन्दु
· मालदीव के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ क्वात्रा का दौरा काफ़ी ‘उत्पादक और सफल’ रहा. मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत द्वारा दी गई यह नई सहायता वर्ष 2019 में पेश की गई 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन का विस्तार था. यह नई सहायता ‘मालदीव के सामाजिक-आर्थिक कल्याण और जन कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के अटूट समर्थन और प्रतिबद्धता का एक पुख्ता प्रमाण है.’
· राष्ट्रपति सोलिह ने भी भारत के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों को याद किया और यह स्पष्ट किया कि हाल के वर्षों में इन संबंधों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है. मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने India@75 ‘शोकेसिंग इंडिया-यूएन पार्टनरशिप’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए याद किया कि किस प्रकार भारत ‘आर्थिक विकास और सुधार में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार’ रहा है.
· गौरतलब है कि माले में भारत के विदेश सचिव क्वात्रा ने मालदीव के वित्त मंत्री इब्राहिम अमीर, आर्थिक विकास मंत्री फय्याज़ इस्माइल से भी मुलाक़ात की और विचार-विमर्श किया. इसके साथ ही उन्होंने अपने समक्ष अहमद लतीफ़ से भी चर्चा की. यह चर्चाएं अधिकतर द्विपक्षीय सहयोग और विकास पर ही केंद्रित रहीं. भारत के विदेश सचिव ने संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद से भी शिष्टाचार भेंट की.
· विदेश सचिव क्वात्रा ने रक्षा मंत्री मारिया दीदी के साथ भी चर्चा की. रक्षा मंत्रालय में आयोजित एक समारोह में क्वात्रा ने मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) को 24 यूटिलिटी वाहन सौंपे. इसके अतिरिक्त भारत ने मार्च, 2019 में साइन की गई 106 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रैंट सहायता योजना के अंतर्गत मालदीव करेक्शनल सर्विस (MCS), और जेल प्रशासन को एक स्पीड बोट भी सौंपी.
· संयोग की बात यह है कि क्वात्रा की यात्रा से पहले भारतीय व्यापारी, मोहन मुथा एक्सपोर्ट्स ने अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) में वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 138 मकानों के साथ एक सैन्य आवासीय टाउनशिप निर्मित करने के अपने निर्णय की घोषणा की. उपनगरीय द्वीप हुलहुमले फेज -2 पर परियोजना के पूरा होने पर मेजबान सरकार द्वारा इसे वापस किया जाएगा.
· क्वात्रा ने मालदीव में अपने प्रवास के दौरान ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की साइट का भी दौरा किया, जो 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय अनुदान और 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर क्रेडिट के साथ ही मालदीव में एक सबसे बड़ी परियोजना है.
लोगों के साथ संपर्क
· एक लिहाज़ से देखा जाए तो, मालदीव के साथ बढ़ रही भारत की सहायता और सहयोग के लिए वहां बढ़ते चीनी प्रभाव और मदद को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, विशेष रूप से पूर्ववर्ती राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के शासन के दौरान. अब्दुल्ला यामीन मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी दो क़ानूनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, हालांकि यह उनकी सरकार के समय चीन के साथ संबंधों से जुड़ी नहीं हैं.
· हाल ही में, यामीन के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के माले शहर के मेयर डॉ. मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने चीन के साथ बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के साथ पार्टी स्तर के संपर्कों को बढ़ाने को ज़िम्मेदार ठहराया.
· जब मुइज़्ज़ू यामीन गुट के अंदर की बातों को जगजाहिर कर रहे थे, तो लगता है कि ऐसा करके वह गठबंधन के राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए अपने दावेदारी भी पेश कर रहे थे. ज़ाहिर है कि अगर यामीन को लंबित मामलों में दोषी ठहराया जाता है, तो अगले साल वे राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे.
· इस सबके बावज़ूद यह आम धारणा कि भारत सिर्फ़ मालदीव में चीनी ख़तरे का जवाब दे रहा था, इसमें शायद ही कोई सच्चाई है. लंबे समय से, नई दिल्ली यह समझती थी कि इस पूरे क्षेत्र की पारंपरिक सुरक्षा पर बार-बार प्रभाव डालने वाले व्यापक सामान्य हितों और सामूहिक मानवीय सुरक्षा के लिए पूरे क्षेत्र को एक साथ विकसित किए जाने की ज़रूरत है.
· देखा जाए तो, शीत युद्ध के बाद आर्थिक सुधारों के काल ने भारत के लिए पड़ोसी देशों में वित्त पोषण की संभावनाओं को ना केवल आसान बनाया, बल्कि इस क्षेत्र में अवसर भी खोले. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि इन देशों की सरकारों को उभरती आईटी युग वाली पीढ़ी की वास्तविक आकांक्षाओं को पूरा करने और वैश्विक सूचना एवं ज्ञान तक उनकी आसान पहुंच के लिए इसकी आवश्यकता थी.
· दक्षिण एशिया के तीव्र गति से हुए लोकतंत्रीकरण ने भारत के लिए दो स्थितियों का निर्माण किया है, एक जहां आवश्यकता हो, वहां विकास सहायता के साथ अपने कदम बढ़ाना और दूसरा, संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा, जो ज़्यादातर पारंपरिक सुरक्षा तक सीमित थी, उससे आगे बढ़कर ‘सुरक्षा की जिम्मेदारी’ (R2P) लेना. इस तरह से दक्षिण एशिया में ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ यानी संपूर्ण सुरक्षा प्रदाता होने के भारत के नए गढ़े गए नारे में मानव सुरक्षा के साथ-साथ पारंपरिक सुरक्षा भी शामिल थी, जिसमें क्षेत्र की प्रमुख चिंताओं और चुनौतियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल था.
· अन्य पड़ोसियों के साथ ही मालदीव के लिए यह सब एक विशेष उद्देश्य के लिए उपयुक्त था, जिसमें विरोधी पाकिस्तान भी शामिल है. इसके बावज़ूद कुछ चुनिंदा देशों, जैसे बांग्लादेश एवं भूटान और श्रीलंका एवं मालदीव में चुनिंदा सरकारों ने ही भारतीय सहायता मांगी और प्राप्त भी की. श्रीलंका में राजपक्षे शासन और मालदीव में यामीन शासन ने चीन को अदालत में ले जाने के बजाए चीन के प्रतिद्वंदी यानी भारत के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करना ज़्यादा उचित समझा और ऐसा किया भी.
· इस सबके बाद भी, मालदीव में घरेलू अर्थव्यवस्था के प्रबंधन को लेकर चिंता की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि मालदीव भी श्रीलंका की भांति आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा है. सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं को छोड़ दें तो, सोलिह सरकार अन्य मदों में होने वाले ख़र्चों से उपजी परिस्थियों को दुरुस्त करने में सक्षम नहीं है, जिसका आलोचक भी ‘राजकोषीय लापरवाही’ के रूप में बखान करते हैं. हालांकि, पोस्ट-कोविड रिकवरी मज़बूरियों की वजह से इन खर्च़ों को रोकना भी बेहद मुश्किल है.
· मालदीव के वित्त मंत्रालय की सितंबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार का कुल वार्षिक ख़र्च एमवीआर 26.5 बिलियन था, जबकि अनुदान समेत कुल राजस्व एमवीआर 19.6 बिलियन तक पहुंच गया, जिससे कुल घाटा एमवीआर 6.9 बिल