चर्चा में क्यों
हाल ही में दुनिया ‘अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस’ मना रही है, तब न सिर्फ़ लोकतंत्र की संस्थाओं और प्रक्रियाओं में, बल्कि लोकतांत्रिक राजनीति के हर विमर्श में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व की ज़रूरत को दोहराया जाना चाहिए. सत्तावाद के उलट, लोकतंत्र को अनिवार्य रूप से, सशक्त बनाने वाली और बेहतरी लाने वाली एक राजनीतिक परियोजना के बतौर देखा जाता है, जो आम नागरिकों को सरकारी नीतियों और शासन की संस्थाओं में अपनी पहचान, रुचियों, पसंद-नापसंद, विचारों तथा मांगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए साधन और रास्ता प्रदान करता है.
आधुनिक लोकतंत्र में जनता के विभिन्न तबक़ों के लिए, अपनी संख्या के अनुरूप राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चाह एक प्रमुख आकांक्षा बनी हुई है. यह ध्यान में रखना अहम है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व का एक अत्यंत व्यवहारोपयोगी महत्व है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सशक्तीकरण (जो सम्मानपूर्ण जीवन यापन के लिए अपरिहार्य हैं) की राह तैयार कर सकता है. इसलिए, समान प्रतिनिधित्व का वादा (जिसकी पेशकश के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली कोशिश करती है) समाज के अभी तक हाशिये पर पड़े व उत्पीड़ित तबक़ों के उत्थान और सामाजिक-राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए ख़ास तौर पर महत्वपूर्ण है.
महत्वपूर्ण बिन्दु
लोकतंत्र और महिला सशक्तीकरण
· दुनिया की कुल आबादी में महिलाओं का हिस्सा 49.5 फ़ीसद है, हालांकि, वे दुनिया में लोगों के सबसे हाशिये पर पड़े तबक़ों में शामिल हैं. गहरे तक पैठे भेदभावपूर्ण पितृसत्तात्मक मानदंडों की अतिप्राचीन लेकिन अब भी मज़बूत संरचनाएं, दुनिया भर में सामाजिक जीवन की लगभग सभी संरचनाओं को अपनी गिरफ़्त में लिये रहती हैं, भले ही यह अलग-अलग रूपों और अनुपातों में हो.
· एक ज़्यादा बराबरी वाला समाज बनाने की दिशा में लक्षित एक आधुनिक दृष्टिकोण और उदार मूल्यों के आगमन के साथ, सामाजिक-आर्थिक के अलावा राजनीतिक दायरों में भी महिला अधिकारों को ठोस रूप लेते देखा गया. ख़ासकर 20वीं सदी से, महिलाओं के सशक्तीकरण के मुद्दे को अलग-अलग समय में दुनिया के कई हिस्सों में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से समर्थन मिला.
· उल्लेखनीय रूप से, 1960 और 1970 के दशक में ‘नारी मुक्ति आंदोलन’ की दूसरी लहर ने गंभीर रफ़्तार पकड़ी और महिलाओं की चहुंमुखी मुक्ति की दिशा में व्यापक सुधार लेकर आयी. सरकार के संवैधानिक रूप से स्वीकृत लोकतांत्रिक स्वरूप के तेज़ी से उदय ने अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये और महिला सशक्तीकरण की दिशा में टिकाऊ आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया.
· महिलाओं के पितृसत्तात्मक शोषण के शिकंजे के धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने की गति और परिमाण अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति में लगातार सुधार और उनकी कर्तृत्व-शक्ति में वृद्धि स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ी है.
वैश्विक संदर्भ का निर्धारण