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बिंदु

  • केंद्र सरकार ने 28 नवंबर 2025 को निर्देश जारी किया था कि भारत में बिकने वाले सभी नए स्मार्टफोन्स में संचार साथी  ऐप अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल हो।
  • इस आदेश के जारी होते ही निजता संरक्षण और नागरिक स्वतंत्रता को लेकर तीखी आलोचना हुईविपक्ष ने इसेसर्विलांस ऐपकहकर चेतावनी दी।
  • परिणामस्वरूप, 3 दिसम्बर 2025 आलोचना और भारी डाउनलोड वृद्धि को देखते हुए को सरकार ने आदेश वापस लियाअब प्री-इंस्टॉल अनिवार्य नहीं रहेगा; ऐप केवलवैकल्पिकहोगा और उपयोगकर्ता इसे अपनी इच्छा से हटा  भी कर सकते हैं।


संचार साथी  क्या है?

  • संचार साथी दूरसंचार विभाग (DoT) की एक नागरिक-केंद्रित डिजिटल पहल है। यह एक वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप दोनों रूपों में उपलब्ध है।
  • जिसे उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा, मोबाइल धोखाधड़ी, फ़ोन चोरी, डुप्लीकेट / फेक IMEI आदि से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • इसके माध्यम से यूज़र अपने फोन का IMEI वैरिफ़ाइ कर सकते हैं, चोरी या खोए फोन को ब्लॉक कर सकते हैं, और संदिग्ध फ्रॉड/स्पूफिंग से जुड़ी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।


सरकार इसे क्यों महत्वपूर्ण मानती है?

  • सरकार का दावा है कि संचार साथी  ऐप देशभर में साइबर-धोखाधड़ी, जाली/क्लोन फोन, फर्जी या डुप्लिकेट IMEI वाले उपकरणों एवं अवैध मोबाइल कनेक्शनों से नागरिकों को सुरक्षित रखने में सक्षम प्लेटफार्म है।
  • इसेजन-भागीदारीआधारित पहल बताते हुए, सरकार का कहना है कि इच्छुक नागरिक स्वयं अपने मोबाइल की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • शुरुआत में अनिवार्य प्री-इंस्टॉल का आदेश इसलिए दिया गया था, ताकि जिन नागरिकों को इस ऐप की जानकारी नहीं है, वे भी सुरक्षित रह सकेंविशेषकर कम टेक-साक्षर (low digital literacy) वर्ग के लिए।

सामान्य अध्ययन पेपर – III  प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन



संदर्भ

भारत तीव्र शहरीकरण, औद्योगिक विस्तार और जनसंख्या वृद्धि के कारण गंभीर पर्यावरणीय संकटों से जूझ रहा है। नदियाँ औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषित हैं, मिट्टी में भारी धातुओं का संचय बढ़ रहा है तथा भूजल गुणवत्ता निरंतर गिर रही है। पारंपरिक सफाई तकनीकें महंगी, ऊर्जा-सघन और अनेक बार पर्यावरण के अनुकूल नहीं होतीं। ऐसे समय में जैव-उपचारण को एक टिकाऊ, किफायती और विज्ञान-आधारित समाधान के रूप में देखा जा रहा है, जिसके कारण हाल के महीनों में यह विषय नीति-चर्चा एवं समाचारों में प्रमुखता से उभरा है।


जैव-उपचारण क्या है?

जैव-उपचारण वह प्रक्रिया है जिसमें सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, कवक, शैवाल), पौधों या उनके एंजाइमों की सहायता से प्रदूषित मिट्टी, जल, भूजल अथवा वायु से विषैले रासायनिक पदार्थों को विघटित, निष्क्रिय अथवा स्थिर किया जाता है।

  • यह प्रदूषकों को कम हानिकारक यौगिकों जैसे जल, कार्बन-डाइऑक्साइड या सरल कार्बनिक अम्लों में बदल देता है।
  • इसके दो प्रमुख प्रकार हैं
    • In-situ जैव-उपचारण: प्रदूषित स्थल पर ही उपचार।
    • Ex-situ जैव-उपचारण: प्रदूषित सामग्री को हटाकर विशेष इकाई में उपचार।

यह तकनीक पर्यावरण संरक्षण एवं पुनर्स्थापन के आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनती जा रही है।


चर्चा में क्यों?

हाल ही में विभिन्न नगरों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में

  • नालों की जैविक सफाई,
  • विषाक्त जल निकायों के पुनर्जीवन,
  • भारी धातुओं से दूषित भूमि के उपचार,
  • तथा नदी प्रदूषण नियंत्रण

के लिए जैव-उपचारण का उपयोग बढ़ा है। सरकार, अनुसंधान संस्थान (जैसे CSIR-NEERI, IITs) एवं नगर निकाय इस तकनीक को तीव्रता से अपनाने लगे हैं। अतः यह विषय पर्यावरणीय शासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सतत विकास के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।


जैव-उपचारण का महत्व

  • पर्यावरण-अनुकूल तकनीक: रासायनिक उपचार की तुलना में प्रकृति-संगत और सुरक्षित।
  • कम लागत ऊर्जा की बचत: बड़े पैमाने पर उपयोग हेतु सुलभ।
  • मिट्टी, जल और भूजल की गुणवत्ता में सुधार
  • प्रदूषकों को स्थायी रूप से विघटित कर पुन:प्रदूषण की संभावना कम करता है।
  • औद्योगिक स्थलों और शहरी जल-निकायों के पुनर्स्थापन में उपयुक्त।
  • तेज शहरीकरण के बीच पारिस्थितिकी तंत्र को दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करता है।


भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • गंगा एवं अन्य नदियों के शुद्धिकरण कार्यक्रमों में जैव-उपचारण तकनीकों का उपयोग।
  • CSIR-NEERI, DBT और IITs द्वारा जैविक एजेंटों एवं बायोरिएक्टर प्रौद्योगिकियों पर शोध।
  • नगर निगमों द्वारा नालों और सीवेज के जैव-उपचारण को बढ़ावा।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में जैव-फिल्टर और सूक्ष्मजीव-आधारित समाधान शामिल।
  • औद्योगिक क्षेत्रों के लिए जैव-उपशमन प्रोटोकॉल और मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) तैयार करना।


चुनौतियाँ एवं सीमाएँ

  • प्रदूषकों की विविधता: सभी रसायनों के लिए उपयुक्त सूक्ष्मजीव उपलब्ध नहीं।
  • प्रक्रिया की धीमी गति: विशेषकर जटिल कार्बनिक रसायनों भारी धातुओं के मामले में।
  • तापमान, pH और जल की उपलब्धता जैसे कारक परिणामों को प्रभावित करते हैं।
  • नियामक ढाँचा निगरानी की कमी: मानकों का पालन अक्सर कमजोर।
  • स्थानीय समुदायों में जागरूकता का अभाव
  • In-situ विधियों में स्थल-विशिष्ट तकनीकी बाधाएँ।


विश्लेषण

भारत में प्रदूषण की तीव्रता को देखते हुए जैव-उपचारण एक अनिवार्य तकनीक बनता जा रहा है। यह तकनीक पारंपरिक रासायनिक उपचारों की तुलना में अधिक टिकाऊ और कम लागत वाली है। परंतु इसकी सफलता अनुसंधान क्षमता, मानकीकरण, स्थल-विशेष तकनीकों, और दीर्घकालीन निगरानी पर निर्भर करती है। यदि वैज्ञानिक ढाँचे, स्थानीय निकायों की क्षमता तथा संसाधनों का समुचित समन्वय हो, तो जैव-उपचारण भारत के पर्यावरण प्रबंधन में महत्वपूर्ण क्रांति ला सकता है।


आगे की राह

  • स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप सूक्ष्मजीवों के अनुसंधान को बढ़ावा।
  • सख्त निगरानी एवं मानकीकरण तंत्र का विकास।
  • नगर निकायों की क्षमता-वृद्धि एवं प्रशिक्षण।
  • बायोटेक स्टार्ट-अप्स और निजी क्षेत्र के साथ PPP मॉडल अपनाना।
  • नदियों, नालों और औद्योगिक स्थलों के लिए GIS आधारित रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करना।
  • जन-भागीदारी और सामुदायिक जागरूकता अभियान।


निष्कर्ष

जैव-उपचारण भारतीय पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान हेतु एक वैज्ञानिक, टिकाऊ और भविष्य-उन्मुख तकनीक प्रदान करता है। वर्तमान परिस्थितियों में यह नदियों, मिट्टी, भूजल और औद्योगिक स्थलों के उपचार के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यदि सरकार, अनुसंधान संस्थान और नागरिक समाज मिलकर इसे व्यापक रूप से लागू करें, तो भारत स्वच्छ पर्यावरण और सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा सकता है।

सामान्य अध्ययन पेपर – III  प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन



संदर्भ

औद्योगिक क्षेत्र किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का आधार स्तंभ माना जाता है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में औद्योगिक वृद्धि केवल उत्पादन और निर्यात को प्रभावित करती है, बल्कि रोजगार, निवेश, बुनियादी ढांचे और जीवन स्तर पर भी व्यापक प्रभाव डालती है। इसी औद्योगिक गतिविधि को मापने के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) का उपयोग किया जाता है।


IIP क्या है?

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधि के उतार-चढ़ाव को मापने वाला प्रमुख सांख्यिकीय संकेतक है।
यह तीन प्रमुख क्षेत्रों

  • खनन
  • विनिर्माण
  • बिजली  

में उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है।

IIP को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) मासिक आधार पर तैयार करता है तथा इसका आधार वर्ष वर्तमान में 2011–12 निर्धारित है। औद्योगिक नीति, निवेश निर्णय, राजकोषीय योजनाओं और आर्थिक मूल्यांकन में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।


चर्चा में क्यों है?

  • हाल ही में 2 दिसंबर 2025 को जारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2025 में IIP की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 0.4% दर्ज की गई, जो सितंबर 2025 की 4.6% वृद्धि की तुलना में अत्यंत निम्न स्तर है।
  • अक्टूबर 2025 में उत्पादन की वृद्धि दर लगभग स्थिर हो गई है।
  • बिजली और खनन क्षेत्रों में गंभीर गिरावट देखी गई।
  • त्योहारों के दौरान कार्य-दिवस कम रहने से उत्पादन प्रभावित हुआ।
  • विनिर्माण क्षेत्र मात्र 1.8% की मामूली वृद्धि दिखा सका।

इस तेज गिरावट ने नीति-निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के बीच चिंता को जन्म दिया है, क्योंकि यह औद्योगिक क्षेत्र में उभरती चुनौतियों का संकेत देती है।


समाचार का महत्व

  • यह औद्योगिक स्वास्थ्य का तात्कालिक संकेतक है।
  • अर्थव्यवस्था की विकास दर (GDP) पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
  • निवेशक भावना पर इसका असर होता है।
  • रोजगार सृजन, निर्यात तथा उत्पादन-श्रृंखला सीधे प्रभावित होती है।
  • सरकार के आर्थिक प्रबंधन और नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता का मूल्यांकन यहीं से प्रारंभ होता है।


IIP वृद्धि में कमी के कारण एवं प्रभाव

  • प्रमुख कारण
  • खनन क्षेत्र में गिरावट (1.8%)उत्पादन और परिवहन व्यवस्था में बाधाएँ।
  • बिजली उत्पादन में तीव्र कमी (6.9%)मौसम एवं मांग में उतार-चढ़ाव।
  • त्योहारों के कारण कार्य-दिवसों में कमीउत्पादन क्षमता पर सीधा प्रभाव।
  • विनिर्माण क्षेत्र में धीमी प्रगतिमांग में अनिश्चितता और लागत बढ़ना।
  • आपूर्ति-श्रृंखला में बाधाएँकच्चे माल की उपलब्धता प्रभावित होना।
  • प्रमुख प्रभाव
  • GDP वृद्धि दर में संभावित गिरावट।
  • निवेश और उत्पादन योजनाओं में अनिश्चितता।
  • रोजगार सृजन धीमा पड़ना।
  • निर्यात और घरेलू मांग प्रभावित होना।
  • बैंकिंग और MSME क्षेत्र पर दबाव।


आवश्यक कदम

  • औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) को और सुदृढ़ करना।
  • खनन और बिजली क्षेत्र में तकनीकी दक्षता बढ़ाना।
  • MSME क्षेत्र को सस्ते ऋण और बाजार उपलब्धता प्रदान करना।
  • विनिर्माण क्षेत्र में लॉजिस्टिक लागत कम करना।
  • मांग आधारित उत्पादन नीति को प्रोत्साहित करना।


 नियमन

  • IIP से संबंधित नियम, कार्य-प्रणाली और वर्गीकरण MoSPI द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
  • औद्योगिक उत्पादन एवं नीतिगत ढाँचा वित्त मंत्रालय और उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा संचालित किया जाता है।


विश्लेषण

वर्तमान IIP आंकड़े बताते हैं कि भारत में औद्योगिक क्षेत्र अभी भी वैश्विक और घरेलू दोनों स्तरों पर अनिश्चितताओं का सामना कर रहा है। विनिर्माण की धीमी गति और बिजली तथा खनन क्षेत्र की गिरावट औद्योगिक आधार को कमजोर कर सकती है। हालांकि, दीर्घकालिक प्रवृत्तियाँ बताती हैं कि भारतीय औद्योगिक क्षमता मजबूत है, किंतु अल्पकालीन चुनौतियाँ उत्पादन-आधारित क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता दर्शाती हैं।


आगे का मार्ग

  • तकनीकी उन्नयन, स्वचालन और डिजिटल उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • बिजली और खनन क्षेत्र में निजी निवेश और PPP मॉडल का विस्तार।
  • सहज व्यापार नीति, त्वरित अनुमोदन प्रणाली और औद्योगिक क्लस्टरों का विकास।
  • MSME क्षेत्र की वित्तीय और तकनीकी बाधाओं को दूर करना।
  • IIP डेटा की अधिक पारदर्शिता, वास्तविक-समय मॉनिटरिंग और बेहतर पूर्वानुमान तंत्र।


निष्कर्ष

IIP में हालिया गिरावट भारत के औद्योगिक क्षेत्र में मौजूद संरचनात्मक चुनौतियों का संकेत देती है। यह आवश्यक है कि सरकार, उद्योग और नीति-निर्माता मिलकर उत्पादन क्षमता, बुनियादी ढाँचे और निवेश-पर्यावरण को सुदृढ़ करें। यदि समय पर प्रभावी कदम उठाए जाएँ, तो भारत केवल अल्पकालीन औद्योगिक सुस्ती से उबर सकता है, बल्कि वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में अपनी स्थिति भी मजबूत कर सकता है।

सामान्य अध्ययन पेपर –III:  प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन


सन्दर्भ 

भारत में सेस का उपयोग लंबे समय से किसी विशेष उद्देश्य के लिए अतिरिक्त कर के रूप में किया जाता रहा है, जिसका इतिहास शिक्षा, स्वास्थ्य और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। 2004 और 2010 में शिक्षा के लिए विशेष सेस लागू किए गए, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सुरक्षा व्यय बढ़ाने के लिए सेस का प्रयोग हुआ, तथा 2014 में स्वच्छता और स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए स्वच्छ भारत सेस शुरू किया गया। तंबाकू, सिगरेट और शराब जैसी हानिकारक वस्तुओं पर भी सेस लगाकर स्वास्थ्य और सामाजिक लागत को पूरा करने का प्रयास किया गया। वस्तु और सेवा कर लागू होने के बाद 2017 में वस्तु और सेवा कर प्रतिपूर्ति सेस शुरू हुआ, जिसका चरणबद्ध समापन अब स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सेस, 2025 के माध्यम से पान मसाला, तंबाकू और सिगरेट जैसे उत्पादों पर नए सेस के जरिए राजस्व अंतर और सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने की योजना में बदल रहा है। साथ ही केंद्रीय उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक, 2025 के माध्यम से पुराने उपकरों में संशोधन कर हानिकारक वस्तुओं पर केंद्र सरकार की वित्तीय पकड़ को मजबूत किया जा रहा है।


सेस क्या है?

सेस एक ऐसा कर है जिसे केंद्र सरकार किसी विशिष्ट उद्देश्यजैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सामान्य करों से अतिरिक्त रूप में वसूलती है।

  • यह सामान्य कर से अलग होता है और इसके माध्यम से प्राप्त राशि केवल निर्धारित उद्देश्य के लिए ही उपयोग की जाती है।
  • सेस आमतौर पर हानिकारक वस्तुओं पर लगाया जाता है, ताकि सार्वजनिक हितों की रक्षा की जा सके और स्वास्थ्य सामाजिक लागत की पूर्ति की जा सके।


क्यों चर्चा में?

  • सरकार ने संसद में दो महत्त्वपूर्ण विधेयक स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक, 2025और केंद्रीय उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किए
  • पान मसाला, तंबाकू, सिगरेट जैसे उत्पादों पर नया स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर लगाया जाएगा।
  • जीएसटी प्रतिपूर्ति उपकर के समाप्त होने से होने वाली राजस्व हानि को पूरा करने के लिए यह नया सेस प्रस्तावित किया गया है।
  • सरकार का तर्क है कि स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त कर लगाना सामाजिक हित में है।
  • लोकसभा में यह विधेयक दिसंबर की शुरुआत में पेश किया गया, जिसके बाद इसे लेकर व्यापक बहस शुरू हो गई।


स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक, 2025

  • यह विधेयक पान मसाला, जर्दा, गुटखा, सिगरेट, तंबाकू उत्पादों पर अतिरिक्त सेस लगाने का प्रावधान करता है।
  • उद्देश्य:
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देना
    • राष्ट्रीय सुरक्षा रक्षा व्यय के लिए संसाधन जुटाना
    • GST क्षतिपूर्ति सेस के चरणबद्ध समापन के बाद राजस्व निरंतरता सुनिश्चित करना


केंद्रीय उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक, 2025

  • इससे तंबाकू और पान मसाला पर पुराने उपकरों शुल्क संरचना में संशोधन किया जाएगा।
  • यहसिन गुड्सपर केंद्र सरकार की वित्तीय पकड़ को मजबूत करता है।


सम्भावित प्रभाव

  • सकारात्मक प्रभाव
  • राजस्व वृद्धि: सरकार को अतिरिक्त धन उपलब्ध होगा, खासकर रक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों के लिए।
  • स्वास्थ्य लाभ: महंगे पड़ने के कारण तंबाकू पान मसाला की खपत कम हो सकती है।
  • सामाजिक लागत में कमी: कैंसर, COPD, मुख रोग आदि से जुड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य लागत में संभावित कमी।
  • नकारात्मक प्रभाव
  • उपभोक्ता मूल्य वृद्धि
  • तस्करी व अवैध व्यापार बढ़ने का जोखिम
  • छोटे व्यापारियों और स्थानीय बाजार पर दबाव
  • कम आय वर्ग पर असमान प्रभाव


विरोध और समर्थन

  • समर्थन के तर्क
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों पर अधिक कर नैतिक रूप से उचित है।
  • सरकार को रक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ठोस राजस्व स्रोत मिलेगा।
  • WHO जैसी वैश्विक संस्थाएँसिन टैक्सका समर्थन करती हैं।
  • विरोध के तर्क
  • उद्योग निकायों का कहना है कि कर बढ़ने से अवैध व्यापार बढ़ेगा।
  • बीड़ी, तंबाकू से जुड़े कुटीर उद्योगों पर प्रतिकूल असर।
  • राज्यों ने चिंता जताई कि नए सेस से राज्यों के हिस्से के राजस्व में कमी सकती है।


विश्व संदर्भ

ऐसे कदम दुनिया के कई देशों में पहले भी उठाए गए हैं

  • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूकेसिगरेट तंबाकू पर अत्यधिकसिन टैक्स
  • थाईलैंडहेल्थ प्रमोशन फंड के लिए स्वास्थ्य सेस
  • फिलिपींसस्वास्थ्य सुरक्षा उपकर से सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का वित्तपोषण
  • यूएसतंबाकू कर राज्य-स्तर पर स्वास्थ्य निधियों के लिए उपयोग किए जाते हैं

भारत भी इसी वैश्विक प्रवृत्ति का अनुसरण कर रहा है।


विश्लेषण

नया सेस सरकार की राजस्व रणनीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

  • एक ओर, यह स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए संसाधन उत्पन्न करता है जो भारत जैसे विशाल देश में अत्यावश्यक है।
  • दूसरी ओर, अत्यधिक कराधान अवैध व्यापार को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सरकार का राजस्व घट भी सकता है।
  • नीति की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि
    • कर वसूली पारदर्शी हो,
    • अवैध आपूर्ति श्रृंखलाओं पर नियंत्रण हो,
    • और राज्यों के साथ राजस्व साझा करने का स्पष्ट ढाँचा तैयार किया जाए।


आगे का मार्ग

  • अवैध तंबाकू व्यापार पर नियंत्रण: तकनीक आधारित ट्रैकिंग सिस्टम (T&T) को लागू करना।
  • राज्यों के साथ बेहतर समन्वय: सेस राजस्व का उचित बँटवारा सुनिश्चित करना।
  • स्वास्थ्य जागरूकता अभियान का विस्तार: कर वृद्धि तभी प्रभावी होती है जब सामाजिक जागरूकता भी बढ़े।
  • कुटीर उद्योगों के लिए वैकल्पिक आजीविका कार्यक्रम: खासकर बीड़ी उद्योग से जुड़े श्रमिकों के लिए।
  • राजस्व उपयोग में पारदर्शिता: यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह धन स्वास्थ्य और सुरक्षा कार्यक्रमों में कैसे उपयोग हो रहा है।


निष्कर्ष

सेस से संबंधित हालिया प्रस्ताव भारत की स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में महत्त्वपूर्ण कदम है। तंबाकू पान मसाला जैसे उत्पादों पर अतिरिक्त कर लगाकर सरकार केवल राजस्व बढ़ाने का प्रयास कर रही है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है। फिर भी, इस नीति की दीर्घकालिक सफलता अवैध व्यापार नियंत्रण, राज्यों के सहयोग और पारदर्शी राजस्व उपयोग जैसी चुनौतियों के समाधान पर निर्भर करेगी। यह संतुलन ही अंततः निर्धारित करेगा कि यह सेस भारत की व्यापक आर्थिक सामाजिक नीतियों को कितनी मज़बूती प्रदान कर पाता है।

सामान्य अध्ययन पेपर – III  प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन


संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में भारत में साइबर अपराधों का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। पारंपरिक धोखाधड़ी से आगे बढ़कर अपराधी अब डिजिटल माध्यमों के जरिये लोगों को भय, भ्रम और दबाव में डालकर धन ऐंठने लगे हैं। इसी क्रम में हाल ही में एक नया शब्द तेजी से चर्चा में आया हैडिजिटल अरेस्ट यह केवल तकनीकी अपराध का नया रूप है, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा, गोपनीयता और विश्वास से जुड़ा गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।


डिजिटल अरेस्ट क्या है?

डिजिटल अरेस्ट एक प्रकार की साइबर धोखाधड़ी है, जिसमें अपराधी स्वयं को किसी सरकारी एजेंसीजैसे पुलिस, CBI, NIA, RBI, या साइबर सेलका अधिकारी बताकर पीड़ित को यह विश्वास दिलाते हैं कि वह किसी अपराध का आरोपी है।
इसके बाद पीड़ित को

  • वीडियो कॉल परवर्चुअल हिरासतमें रखा जाता है,
  • डराया-धमकाया जाता है,
  • और खातों से पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया जाता है।

अर्थात यह धोखे के माध्यम से किया गया मानसिक कैद है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी वास्तविक गिरफ्तारी के डिजिटल तरीक़े से बंदी जैसा व्यवहार करने लगता है।


खबरों में क्यों?

  • अक्टूबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट नेसुओ मोटोनोटिस लिया और सभी राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों एवं केंद्र सरकार को जवाब देने को कहा।
  • 2 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभीडिजिटल अरेस्टमामले  चाहे किसी भी राज्य में हों  उन्हें CBI द्वारा जाँचा जाए। राज्यों को तुरंत CBI को जांच की सहमति देनी होगी।
  • एक अन्य मामले में, दिल्ली में सीबीआई ने एक फर्म की जांच शुरू की है जिसने लगभग 20,000 सिम-कार्ड्स खरीदे थे  जिनका इस्तेमाल साइबर फ्रॉड, डिजिटल अरेस्ट जैसे अपराधों के लिए हुआ।
  • मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे में कई लोगों से लाखोंकरोड़ों रुपये की ठगी, जहाँ अपराधियों ने पीड़ितों कोड्रग्स केस”, “पार्सल में अवैध वस्तु”, “मनी लॉन्ड्रिंगके आरोप लगाकर डराया।
  • हैदराबाद में एक महिला को 36 घंटे तक वीडियो कॉल पर रखा गया और 30 लाख रुपये ठग लिए गए।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा CERT-In ने लगातार एडवाइजरी जारी कर लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी।
  • वित्त मंत्रालय ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक धोखाधड़ी का उभरता संकट बताया।इन घटनाओं ने डिजिटल अरेस्ट को राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया।


सामाजिक, आर्थिक और नैतिक प्रभाव

  • सामाजिक प्रभाव
  • भय और अविश्वास का वातावरण
  • वरिष्ठ नागरिक विद्यार्थियों का बढ़ता शोषण
  • परिवार और समाज में तनाव
  • डिजिटल शासन पर नागरिकों का भरोसा कम होना
  • आर्थिक प्रभाव
  • बैंक खातों से लाखोंकरोड़ों की हानि
  • डिजिटल भुगतान प्रणाली पर नकारात्मक असर
  • साइबर बीमा का बढ़ता जोखिम
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष नुकसान
  • नैतिक/एथिकल प्रभाव
  • अधिकारियों की भूमिका का दुरुपयोग
  • गोपनीयता, गरिमा और मानसिक स्वास्थ्य पर आघात
  • भय के माध्यम से लोगों को नियंत्रित करना
  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन


आँकड़े / सांख्यिकी

वर्ष / अवधि

रिपोर्टेड मामले / राशि (भारतीय रुपये)

2022

39,925 मामले, कुल लगभग ₹ 91.14 करोड़ का घाटा

2024

लगभग 1,23,672 मामले, लगभग ₹ 1,935.51 करोड़ का घाटा

2025 (सिर्फ पहले दोनों महीने)

17,718 मामले, लगभग ₹ 210.21 करोड़ का घाटा

2025 (जनवरी 2025 में एक केस)

एक वरिष्ठ नागरिक को ₹ 33 लाख से अधिक की ठगी

2025 के अंत तक

दैनिक शिकायतें, 3,962 Skype IDs और 83,668 WhatsApp-एकाउंट्स ब्लॉक किए गए; 7.81 लाख SIM और 2,08,469 IMEI ब्लॉक हुए।

  • NCRB के अनुसार, 2023–24 में साइबर अपराधों में 20–25% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • सरकार के अनुसार, प्रतिदिन 4,000 से अधिक साइबर शिकायतें साइबर क्राइम पोर्टल पर दर्ज होती हैं।
  • डिजिटल अरेस्ट जैसी ठगी से सैकड़ों करोड़ रुपये की हानि होने का अनुमान।
  • भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ते साइबर अपराध प्रभावित देशों में से एक।


सरकार द्वारा कार्रवाई

  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (1930 हेल्पलाइन) का विस्तार
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना
  • फर्जी कॉल सेंटरों पर बड़े पैमाने पर छापे
  • डिजिटल भुगतान पर KYC और सुरक्षा मानकों को कड़ा करना
  • CERT-In द्वारा नियमित एडवाइजरी
  • इंटरनेशनल सहयोग बढ़ाने के लिए इंटरपोल और FATF के साथ साझेदारी


भारत में डिजिटल फ्रॉड से जुड़े नियम/कानून

  • आईटी अधिनियम, 2000
  • आईपीसी की धोखाधड़ी जालसाजी से संबंधित धाराएँ
  • भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2023 (स्पैम और अवैध कॉल पर नियंत्रण)
  • RBI के साइबर सुरक्षा नियम
  • डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023
  • FIR और साइबर शिकायतों के लिए 1930 हेल्पलाइन


विश्लेषण

डिजिटल अरेस्ट के मामलों से यह स्पष्ट है कि अपराधी अब तकनीक, मनोविज्ञान और सामाजिक विश्वासतीनों का उपयोग करके जटिल धोखाधड़ी कर रहे हैं। यह धोखाधड़ी केवल धन नहीं, बल्कि निजता, सम्मान, आत्म-विश्वास और सामाजिक सुरक्षा को भी निशाना बनाती है।
भारत की डिजिटल क्रांति, जैसे UPI, डिजिटल KYC, और ऑनलाइन सेवाएँजहाँ बड़ी उपलब्धि हैं, वहीं इनसे जुड़े जोखिम भी बढ़ते जा रहे हैं।
इसका मूल कारण है

  • साइबर साक्षरता की कमी
  • सरकारी प्रक्रियाओं का भय
  • तेज़ी से बदलती तकनीक
  • कमजोर डिजिटल अनुशासन
  • और सीमित साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण


आगे की राह  

  • सख्त कानून और स्पष्ट प्रावधान: डिजिटल अरेस्ट जैसे नए साइबर अपराधों को अलग से अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए ताकि फर्जीवारंट, वीडियो-कॉन्फ्रेंस ज़रिए गिरफ्तारियाँ, ग्राहक धन वसूली आदि को स्पष्ट अपराध माना जाए।
  • सिम और बैंकिंग-नियमन में सुधार: सिम-कार्ड निर्गमन पॉलिसी को मजबूत करना, KYC प्रक्रिया सख्त करना, OTP/डिजिटल बैंकिंग को सुरक्षित बनाना, बैंकिंग धोखाधड़ी पर निगरानी बढ़ाना।
  • साइबर क्राइम टेक्नोलॉजी फोरेंसिक क्षमता बढ़ाना: बैंक अकाउंट मॉनिटरिंग, स्पूफेड कॉल्स / VOIP की पहचान, फोन-नेटवर्क डेटा-ट्रैफिक पर निगरानी, अंतर-राज्यीय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
  • जन-जागरूकता और शिक्षा: साइबर साक्षरता अभियान, नागरिकों (विशेषकर बुज़ुर्गों) को यह समझाना कि असली पुलिस / अदालत फोन पर नहीं बुलाती; किसी भी अज्ञात कॉल / मैसेज / वीडियो-कॉल पर बैंक जानकारी / OTP साझा करें; संदिग्ध कॉल को तुरंत रिपोर्ट करें।
  • नागरिक-सहायता शिकायत तंत्र: एक आसान, विश्वसनीय राष्ट्रीय साइबरक्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (जैसे NCRP) के अलावा, हेल्प-लाइन, तेजी से एफआईआर दर्ज करना, और पीड़ितों को फंड रिकवरी कानूनी मदद प्रदान करना।
  • मौनीटरिंग और पुनरावलोकन: वार्षिक डेटा / रिपोर्ट प्रकाशित करना, कितने केस हुए, कितने追回 हुए, गिरफ़्तारियाँ, मुकदमे, सजा सबके लिए सार्वजनिक अपडेट।


निष्कर्ष

डिजिटल अरेस्ट केवल एक साइबर अपराध नहीं, बल्कि समाज, शासन और तकनीक के बीच के विश्वास का गंभीर संकट है। भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था जितनी तेजी से बढ़ रही है, उससे कहीं अधिक तेजी से साइबर अपराध भी विकसित हो रहे हैं। ऐसे में सरकार, नागरिकों और डिजिटल संस्थानोंसभी को मिलकर सुरक्षित डिजिटल भारत की दिशा में प्रयास करने होंगे। साइबर जागरूकता, कानूनी सुधार और तकनीकी सुरक्षा ही इस चुनौती से निपटने का सबसे प्रभावी रास्ता है।

सामान्य अध्ययन पेपर  – II शासन व्यवस्था, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सामान्य अध्ययन पेपर – III: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन

संदर्भ

हाल ही में, भारत सरकार द्वारा रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के बढ़ते वैश्विक और राष्ट्रीय खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक पाँच-वर्षीय रोडमैप, रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP-AMR) 2.0 (2025-2029) का अनावरण किया गया है। यह नई कार्य योजना AMR के खिलाफ भारत की लड़ाई में 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसकी चर्चा स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण मंत्रालयों के बीच सहयोग को लेकर केंद्र में है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्या है?

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) वह स्थिति है जिसमें बैक्टीरिया, वायरस, फंगी और परजीवी समय के साथ बदल जाते हैं और अब उन दवाओं (एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटीपैरासिटिक) पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं जो पहले उन्हें नष्ट करने या उनकी वृद्धि को रोकने के लिए उपयोग की जाती थीं। परिणामस्वरूप, संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है, जिससे बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। इसे अक्सर "सुपरबग्स" के उदय के रूप में जाना जाता है।

चर्चा में क्यों है?

  • नई कार्य योजना (NAP-AMR 2.0): सरकार ने पिछली योजना की कमियों को दूर करने और क्षेत्रीय कार्यान्वयन पर ज़ोर देने के लिए नई योजना जारी की है।
  • बढ़ता मृत्युदर: AMR को एक "साइलेंट महामारी" कहा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, AMR के कारण वैश्विक स्तर पर हर साल लाखों मौतें होती हैं, और यह आँकड़ा भविष्य में हृदय रोगों से भी अधिक हो सकता है।
  • भारत की केंद्रीयता: विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों ने भारत को मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ऑर्गनिज़्म (MDROs) के प्रसार के एक प्रमुख केंद्र के रूप में चिन्हित किया है।
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण: पशुपालन और पर्यावरणीय क्षेत्रों में एंटीबायोटिक के अनियंत्रित उपयोग के कारण AMR का संकट गहरा रहा है, जिसने बहु-क्षेत्रीय समाधान की आवश्यकता को केंद्र में ला दिया है।

NAP-AMR 2.0 (2025-2029) क्या है

यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिए भारत का एक व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना का दूसरा संस्करण है। यह 'वन हेल्थ' फ्रेमवर्क के तहत स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा और पर्यावरण क्षेत्रों को जोड़ता है।

  • मुख्य स्तंभ:
  • जागरूकता बढ़ाना
  • ज्ञान और साक्ष्य आधार को मजबूत करना (निगरानी/सर्विलांस)
  • संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण
  • एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग
  • अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश
  • आवश्यकता
  • पिछले कार्यान्वयन की कमी: पिछली NAP-AMR (2017-2021) में जागरूकता बढ़ी, लेकिन राज्य और ज़िला स्तर पर प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संस्थागत और वित्तीय ढाँचे का अभाव रहा।
  • बढ़ता खतरा: भारत में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग (ओवर--काउंटर बिक्री, अधूरा कोर्स) बहुत अधिक है, जिससे संक्रमण तेजी से प्रतिरोधी हो रहे हैं।
  • आर्थिक बोझ: AMR के कारण उपचार की लागत बढ़ जाती है और उत्पादकता में कमी आती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता है।
  • वन हेल्थ की अनिवार्यता: AMR केवल मानव स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है; पशुओं में उपयोग की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएँ और सीवेज/जलमार्गों में एंटीबायोटिक अवशेष इसका एक प्रमुख कारण हैं। NAP-AMR 2.0 इस बहु-क्षेत्रीय समस्या के लिए एक बहु-क्षेत्रीय समाधान प्रदान करता है।

मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ऑर्गनिज़्म (MDROs) में भारत की स्थिति

भारत को वैश्विक स्तर पर MDROs (जो एक से अधिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी होते हैं) के उच्चतम जोखिम वाले देशों में से एक माना जाता है।

  • उच्च प्रसार दर: हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि लगभग 83% भारतीय रोगी मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ऑर्गनिज़्म से संक्रमित पाए गए हैं।
  • प्रमुख 'सुपरबग': न्यूमोकोकल न्यूमोनिया, टीबी (TB), और एंटरोबैक्टीरियेसी (जैसे . कोलाई) में प्रतिरोध की दर खतरनाक स्तर पर है।
  • टीबी का खतरा: भारत में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (MDR-TB) और एक्सटेंसिवली ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (XDR-TB) एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, जो सफल उपचार की संभावनाओं को कम करती है।

सरकार की पहल

  • रेड लाइन अभियान: फार्मेसियों में एंटीबायोटिक दवाओं को 'रेड लाइन' के साथ लेबल करने की पहल, ताकि उन्हें बिना डॉक्टर के पर्चे के बेचा जा सके।
  • नेशनल सर्विलांस प्रोग्राम: रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय निगरानी नेटवर्क (NARS-Net) की स्थापना, ताकि विभिन्न संस्थानों से AMR डेटा एकत्र किया जा सके।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट (D&C Act) में संशोधन: एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री को सख्ती से विनियमित करने के लिए नियम कड़े किए गए हैं।
  • AMR रिसर्च पहल: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अनुसंधान को बढ़ावा देने और नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास के लिए पहल की है।

विश्लेषण

NAP-AMR 2.0 एक प्रगतिशील कदम है क्योंकि यह 'वन हेल्थ' को महज एक सिद्धांत के बजाय एक कार्यान्वयन योग्य रणनीति बनाता है। हालांकि, इसकी सफलता निम्नलिखित पर निर्भर करेगी:

  • वित्तीयन: राज्यों को कार्यान्वयन के लिए अनिवार्य वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना।
  • नियामक प्रवर्तन: विशेष रूप से कृषि और पशुपालन क्षेत्रों में एंटीबायोटिक उपयोग के नियमन को सख्ती से लागू करना।
  • जन जागरूकता: आम जनता के बीच एंटीबायोटिक उपयोग के बारे में भ्रांतियों को दूर करने के लिए गहन अभियान चलाना।

आगे की राह

  • स्थानीयकरण: AMR कार्य योजनाओं को राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर तक स्थानीय भाषाओं में प्रसारित और कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
  • टीकाकरण: संक्रमण की रोकथाम के लिए सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रमों को मजबूत करना, जिससे एंटीबायोटिक की आवश्यकता कम हो सके।
  • अनुसंधान और प्रोत्साहन: नई एंटीबायोटिक दवाओं के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन: फार्मास्युटिकल अपशिष्ट और अस्पतालों से निकलने वाले सीवेज का बेहतर प्रबंधन, क्योंकि ये AMR के प्रसार के हॉटस्पॉट हैं।

निष्कर्ष

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) एक जटिल और बहु-आयामी चुनौती है जो हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरे में डालती है। NAP-AMR 2.0 इस चुनौती से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, लेकिन सफलता केवल तभी संभव है जब 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण को सभी स्तरों पर ईमानदारी, मजबूत संस्थागत ढाँचे और पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के साथ लागू किया जाए। AMR के खिलाफ यह लड़ाई केवल दवाओं को संरक्षित करने की नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की लड़ाई है।

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: भारतीय विरासत और संस्कृति, इतिहास तथा विश्व एवं समाज का भूगोल

सामान्य अध्ययन पेपर –II: शासन व्यवस्था, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध



सन्दर्भ

भारत अभूतपूर्व शहरी संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। जनसंख्या वृद्धि, ग्रामीण-से-शहरी प्रवासन, आर्थिक केंद्रीकरण तथा तीव्र अवसंरचनात्मक विस्तार ने महानगरों को अत्यधिक बोझिल बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप वायु-प्रदूषण, हरित आवरण का क्षरण, शहरी ताप-द्वीप प्रभाव, भीड़भाड़, ध्वनि-प्रदूषण और निष्क्रिय जीवन-शैली जैसी चुनौतियाँ स्वास्थ्य-संकट का रूप धारण कर चुकी हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आकलनों के अनुसार, भारत में हृदय-रोग (CVDs) मृत्यु का एक प्रमुख कारण बन चुके हैं। नवीनतम प्रकाशित विश्लेषणों में स्पष्ट संकेत दिया गया कि भारतीय शहरों को अब केवल आर्थिक उत्पादकता के केंद्रों की भाँति नहीं, बल्कि स्वास्थ्य-लचीले परिवेश के रूप में पुनर्विकसित करने की आवश्यकता है। इसी संदर्भ मेंहृदय-सशक्त शहरी नियोजनकी अवधारणा राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में आई है।


भारत में शहरी नियोजन :

भारत का शहरी नियोजन दीर्घकाल तक भौतिक अवसंरचना के विकास पर केन्द्रित रहा है

  • भूमि-उपयोग विभाजन,
  • सड़क जाल का विस्तार,
  • आवासीय एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों का पृथक्करण,
  • मूलभूत सेवाओं का प्रावधान।

हालाँकि, यह मॉडल पर्यावरणीय स्थिरता, जन-स्वास्थ्य, जीवन-गुणवत्ता, सक्रिय गतिशीलता तथा हरित अवसंरचना जैसे तत्वों पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे सका।
नगर निकायों की वित्तीय-कमज़ोरी, तकनीकी विशेषज्ञता की कमी, नियोजन-दस्तावेज़ों और कार्यान्वयन में असंगति ने स्थिति को और जटिल बनाया है। यही कारण है कि आधुनिक शहर प्रदूषण, जाम, तनाव और रोगों के केन्द्र बनते जा रहे हैं।


चर्चा में क्यों?

हालिया विश्लेषणों में निम्न तथ्य रेखांकित किए गए

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आकलनों के अनुसार, भारत में हृदय-रोग (CVDs) मृत्यु का एक प्रमुख कारण बन चुका है।
  • भारतीय महानगरों में हृदय-रोगों की दर खतरनाक रूप से बढ़ रही है।
  • वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण, तनाव, अनियोजित यातायात और शारीरिक गतिविधि की कमी इसके मुख्य कारण हैं।
  • युवा आबादी में भी हृदय-रोग का बढ़ता प्रसार शहरी स्वास्थ्य संकट का संकेत है।
  • शहरी नियोजन प्रक्रियाओं मेंस्वास्थ्य प्रभाव मूल्यांकन” (HIA) का लगभग अभाव है।

इन्हीं कारणों सेहृदय-स्वास्थ्य अनुकूल शहरी नियोजनको एक अनिवार्य नीति-विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।


हृदय-सशक्त शहरी नियोजन क्या है?

यह शहरी नियोजन का वह आधुनिक प्रतिमान है जिसकी मूल भावना यह है कि शहर की संरचना नागरिकों के हृदय-स्वास्थ्य को सहारा दे, कि उसे क्षति पहुँचाए इसके प्रमुख आधार

  • सक्रिय गतिशीलता सक्षम शहर
  • चौड़े, सुरक्षित एवं अवरोध-मुक्त फुटपाथ
  • परस्पर जुड़े साइकिल-पथ
  • पैदल-अनुकूल सड़क-विकास
  • सशक्त हरित अवसंरचना
  • पार्क, उद्यान, नदियों-झीलों का पुनर्जीवन
  • शहरी वन
  • वृक्ष-आवरण में न्यूनतम मानक का निर्धारण
  • मानव-केंद्रित भूमि-उपयोग
  • आवास, कार्यस्थल, विद्यालय, बाजारसर्वाधिक निकट
  • यात्रा-समय में कमी, तनाव में कमी
  • निर्बाध एवं स्वच्छ सार्वजनिक परिवहन
  • मेट्रो, इलेक्ट्रिक बसें, BRT प्रणालियाँ
  • निजी वाहनों पर निर्भरता में कमी
  • स्वास्थ्य-सक्षम नागरिक परिवेश
  • व्यायाम, खेल, चलनेदौड़ने हेतु सार्वजनिक स्थान
  • कम-शोर, कम-प्रदूषण वाले क्षेत्र
  • पौष्टिक एवं सुरक्षित खाद्य-प्रणालियाँ


प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव
  • हृदय-रोग, मोटापा, मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप में कमी
  • तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में कमी
  • औसत आयु एवं कार्य-क्षमता में वृद्धि
  • पर्यावरणीय प्रभाव
  • वायु-प्रदूषण में कमी
  • ताप-द्वीप प्रभाव में गिरावट
  • जलवायु-लचीलापन में वृद्धि
  • आर्थिक प्रभाव
  • स्वास्थ्य-व्यय में कमी
  • उत्पादकता में वृद्धि
  • निवेश-अनुकूल, रहने योग्य शहरों का निर्माण
  • सामाजिक प्रभाव
  • अधिक समावेशी, सुरक्षित और जीवंत सार्वजनिक जीवन
  • समुदायिक सहभागिता में वृद्धि


समस्या के मूल कारण

  • अनियोजित, वाहन-केन्द्रित शहरीकरण
  • नगर निगमों की वित्तीय-संकटग्रस्त स्थिति
  • प्रदूषण-नियमन की कमज़ोर अनुपालना
  • सार्वजनिक परिवहन का सीमित विस्तार
  • शहरी हरित आवरण का ह्रास
  • निष्क्रिय तनावपूर्ण जीवन-शैली
  • नीति-निर्माण और क्रियान्वयन में विखंडन


सरकार की पहलें और उनकी अनिवार्यता

सरकार ने स्वास्थ्य-केंद्रित शहरी विकास के लिए अनेक हस्तक्षेप किए हैं

  • स्मार्ट सिटीज़ मिशन— “पैदल चलने की अनुकूलता, साइकिल ट्रैक, खुला क्षेत्र
  • AMRUT 2.0तालाबों, पार्कों, हरित क्षेत्रों का संरक्षण
  • नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP)वायु गुणवत्ता में सुधार
  • नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसीसार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता
  • ग्रीन इंडिया मिशनवृक्षारोपण
  • स्वच्छ भारत मिशनस्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार

सरकारी पहल अनिवार्य है क्योंकि

  • स्वास्थ्य एक सार्वजनिक संपत्ति है जो सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध होनी चाहिए
  • शहरी नियोजन बहु-क्षेत्रीय विषय है
  • निजी क्षेत्र अकेले परिवहन, पर्यावरण स्वास्थ्य का संतुलन नहीं बना सकता


विश्लेषण

भारतीय शहरों का मौजूदा ढाँचा आर्थिक उत्पादकता तो बढ़ाता है, परंतु नागरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। अंतरराष्ट्रीय मॉडल “15-मिनट शहर मॉडल”, “स्वस्थ शहर रूपरेखा”, “शहरी हरित गतिशीलता”—यह सिद्ध कर चुके हैं कि स्वास्थ्य-अनुकूल शहर आर्थिक रूप से भी अधिक समृद्ध होते हैं

भारत में चुनौती यह है कि

  • शहरीकरण पूर्व हो चुका, योजना पश्चात हो रही है
  • संस्थागत क्षमता सीमित है
  • भूमि-उपयोग कानून पुराने हैं
  • स्वास्थ्य को शहरी नियोजन का केंद्रीय तत्व नहीं माना जाता

लेकिन अवसर भी विशाल हैंभारत की युवा आबादी, तेजी से हो रहा डिजिटलीकरण, हरित अवसंरचना पर बढ़ता निवेश, और वैश्विक अनुभवों से सीखने की क्षमता इसकी संभावनाओं को मजबूत बनाते हैं।


आगे की राह

  • स्वास्थ्य-आधारित शहरी नीति का निर्माण
  • प्रत्येक मास्टर प्लान में स्वास्थ्य प्रभाव मूल्यांकन(HIA) अनिवार्य
  • पदयात्रा सुगमता सूचकांक और हरित आवरण मानक को नगर नियोजन का मूल मानक निर्धारण
  • सुरक्षित, निर्बाध सार्वजनिक परिवहन पर बड़ा निवेश
  • मिश्रित-प्रयोग विकास को प्राथमिकता देना
  • शहरी ऊष्णद्वीप न्यूनीकरण योजनाएँ
  • हरित छतें, वर्षाजल-संचयन, शून्य-अपशिष्ट मॉडल
  • नगर निकायों की वित्तीय सुदृढ़तासंपत्ति कर सुधार
  • समुदाय-आधारित हरित पहलशहरी साझा संसाधन का पुनर्जीवन


निष्कर्ष

भारत का भविष्य उसके शहरों से तय होगा, और शहरों की स्थिरता उनके स्वास्थ्य-उन्मुख ढाँचे से।
हृदय-सशक्त शहरी नियोजनकेवल एक अवधारणा नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक समृद्धि तीनों का साझा आधार है। यदि भारत इस दिशा में गंभीर एवं दीर्घकालिक नीति-हस्तक्षेप करता है, तो उसके शहर केवल रहने योग्य बनेंगे, बल्कि जीवन को सशक्त, स्वस्थ और सुरक्षित करने वाले भी सिद्ध होंगे।