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सामान्य अध्ययन पेपर – III प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन
संदर्भ
ग्रेट निकोबार परियोजना वर्तमान में भारत की रणनीतिक सुरक्षा और नीली अर्थव्यवस्था की महत्वाकांक्षाओं के केंद्र में है। इस परियोजना पर बहस तब तेज हुई, जब इसकी पर्यावरणीय मंज़ूरी को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में कानूनी चुनौतियाँ सामने आईं और साथ ही प्रस्तावित विकास क्षेत्र से दुर्लभ जैव-विविधता की नई प्रजातियों की खोज ने इस द्वीप के पारिस्थितिक महत्त्व को रेखांकित किया। यह विषय भू-राजनीतिक अनिवार्यता और सतत विकास के बीच संतुलन की चुनौती प्रस्तुत करता
ग्रेट निकोबार परियोजना
ग्रेट निकोबार द्वीप समूह (GNI) परियोजना भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग ₹72,000 करोड़ से ₹92,000 करोड़ है। इसे नीति आयोग द्वारा परिकल्पित किया गया है और इसका कार्यान्वयन अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) द्वारा किया जा रहा है।
परियोजना के मुख्य घटक | स्थान | उद्देश्य |
अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) | गैलथिया बे | भारत को वैश्विक ट्रांसशिपमेंट हब बनाना। |
ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा | लगभग 13 किमी दूर | नागरिक और रक्षा (दोहरे उपयोग) हेतु संपर्क बढ़ाना। |
आधुनिक टाउनशिप | अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निकट | परियोजना कर्मचारियों और बढ़ते शहरीकरण की ज़रूरतों को पूरा करना। |
गैस-सौर ऊर्जा संयंत्र | ----- | द्वीप के लिए आत्मनिर्भर, हरित ऊर्जा सुनिश्चित करना। |
चर्चा में क्यों?
- ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट वाले क्षेत्र में जैव-विविधता से जुड़ी कई महत्वपूर्ण नई प्रजातियों की खोज हुई है।
- वर्ष 2021 से इस क्षेत्र में लगभग 40 नई प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से लगभग आधी केवल वर्ष 2025 में ही दर्ज की गई हैं।
- खोजी गई प्रजातियों में एक नई साँप की प्रजाति वुल्फ स्नेक शामिल है, जिसे उसके दुर्लभ होने के कारण IUCN रेड लिस्ट में "लुप्तप्राय" के रूप में वर्गीकृत करने की सिफारिश की गई है। एक संभावित नई क्रैक पक्षी प्रजाति भी खोजी गई है।
- इन नियमित खोजों ने द्वीप के समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र की ओर ध्यान आकर्षित किया है, और प्रमुख पर्यावरणविदों ने परियोजना क्षेत्र की जैव-विविधता के पूर्ण संरक्षण की मांग को दोहराया है।
परियोजना का सामरिक महत्त्व
यह परियोजना मात्र एक आर्थिक उद्यम नहीं है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की सामरिक सुरक्षा और वैश्विक व्यापार महत्वाकांक्षाओं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
भारत बनाम चीन, श्रीलंका संदर्भ और वैश्विक परिदृश्य
- चीन को रणनीतिक जवाब: ग्रेट निकोबार द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य (Malacca Strait) से निकट है, जो दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्गों में से एक है। यह स्थान चीन की 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति (जैसे ग्वादर और हंबनटोटा) का मुकाबला करने के लिए भारत को एक शक्तिशाली फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस प्रदान करता है।
- श्रीलंका और निगरानी का मुकाबला: यदि चीन कोलंबो या हंबनटोटा जैसे स्थानों का उपयोग सैन्य अड्डे या भारत पर निगरानी के लिए करता है, तो ग्रेट निकोबार में दोहरे उपयोग वाले हवाई अड्डे और नौसैनिक-सक्षम पोर्ट का विकास भारत को पूर्वी IOR में त्वरित प्रतिक्रिया और प्रभावी निगरानी क्षमता प्रदान करता है। यह चीन के विस्तारवादी समुद्री दावों को संतुलित करने में एक महत्त्वपूर्ण "रणनीतिक अवरोधक" के रूप में कार्य करेगा।
- वैश्विक व्यापार हब: यह परियोजना सिंगापुर, कोलंबो जैसे विदेशी ट्रांसशिपमेंट हब पर भारत की निर्भरता को कम करेगी, जिससे देश का लगभग 75% ट्रांसशिप्ड कार्गो भारतीय नियंत्रण में आ जाएगा।
नई प्रजातियाँ एवं जैव-विविधता
खोजी गई नई प्रजातियाँ गैलथिया खाड़ी और आसपास के वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र के अद्वितीय और स्थानिक महत्त्व पर जोर देती हैं।
- नई प्रजातियाँ: इनमें एक नई वुल्फ स्नेक प्रजाति और संभावित नई क्रैक पक्षी प्रजाति शामिल हैं।
- ये खोजें दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र अभी भी वैज्ञानिक रूप से अज्ञात है और इसमें ऐसे जीव शामिल हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं पाए जाते हैं।
- ये प्रजातियाँ भारत को जैव-विविधता के 'हॉटस्पॉट' के रूप में स्थापित करती हैं।
- परियोजना का विकास लेदरबैक समुद्री कछुए के सबसे महत्वपूर्ण घोंसले के स्थलों और इन स्थानिक प्रजातियों के आवास को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचा सकता है।
कानूनी एवं विनियामक घटनाक्रम
परियोजना को लेकर कानूनी विवाद और विनियामक चुनौतियाँ लगातार चर्चा में रही हैं:
- पर्यावरण और वन मंज़ूरी (EC/FC): परियोजना को वर्ष 2022 में पर्यावरण और वन मंज़ूरी मिल चुकी है, लेकिन यह मंज़ूरी कठोर संरक्षण और शमन उपायों की शर्त पर आधारित है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT): परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंज़ूरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई है, और दिसंबर 2025 में NGT ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो परियोजना के भविष्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण विनियामक अनिश्चितता पैदा करता है।
- जनजातीय अधिकार (FRA): वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे हैं। एक्टिविस्ट्स का दावा है कि विशेष रूप से शोम्पेन (PVTG) और निकोबारी जनजातियों की भूमि के उपयोग से पहले ग्राम सभाओं की अनिवार्य सहमति नहीं ली गई है।
भारत सरकार का दृष्टिकोण
सरकार परियोजना को राष्ट्रीय हित के रूप में देखती है और इसके लाभों को चुनौतियों से अधिक महत्त्व देती है:
- राष्ट्रीय संपत्ति: सरकार ने NGT में तर्क दिया है कि यह परियोजना एक 'राष्ट्रीय संपत्ति' बनने जा रही है, जो भारत की समुद्री क्षमता और सुरक्षा को दशकों तक मज़बूत करेगी।
- शमन और निगरानी: सरकार ने आश्वस्त किया है कि उसने अगले 30 वर्षों के लिए विस्तृत शमन संरक्षण और अनुसंधान कार्यक्रम अनिवार्य किए हैं, जिसमें प्रतिपूरक वनरोपण और प्रभावित वन्यजीवों के स्थानांतरण की योजनाएँ शामिल हैं।
- जनजातीय कल्याण: सरकार ने यह भी आश्वस्त किया है कि जनजातीय समुदायों को विस्थापित नहीं किया जाएगा और जनजातीय आरक्षित क्षेत्र परियोजना के दायरे से बाहर रहेंगे।
विश्लेषण
ग्रेट निकोबार परियोजना विकास और पारिस्थितिकी के बीच द्वंद्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- असंतुलित प्राथमिकता: परियोजना की डिज़ाइन में सामरिक और आर्थिक हितों को पर्यावरणीय और जनजातीय चिंताओं पर अत्यधिक प्राथमिकता दी गई है। गैलथिया खाड़ी जैसे महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल को पोर्ट के लिए चुनना इस असंतुलन को दर्शाता है।
- पारदर्शिता का अभाव: EIA रिपोर्ट की गुणवत्ता और उच्च पावर्ड कमेटी (HPC) की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने पर उठ रहे सवाल प्रक्रियागत पारदर्शिता की कमी को दर्शाते हैं।
- लागत-लाभ विश्लेषण: अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति और शोम्पेन जैसी कमजोर जनजातीय समूह की संस्कृति के संभावित विनाश की दीर्घकालिक लागत, अल्पकालिक आर्थिक लाभों पर भारी पड़ सकती है।
आगे की राह
परियोजना की सफलता और स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए एक समावेशी और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील मॉडल अपनाना आवश्यक है:
- पर्यावरणीय सुधार: पोर्ट को गैलथिया खाड़ी से किसी कम संवेदनशील क्षेत्र में स्थानांतरित करने के विकल्प पर पुन: विचार करना चाहिए।
- FRA का कठोर अनुपालन: जनजातीय समुदायों की ग्राम सभाओं से 'सूचित सहमति' प्राप्त करने के लिए FRA, 2006 का कठोरता से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा हो सके।
- स्वतंत्र निगरानी: परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की निगरानी के लिए उच्चतम न्यायालय या NGT की देखरेख में एक स्वतंत्र, बहु-विषयक निकाय का गठन किया जाए।
- चरणबद्ध विकास: परियोजना को छोटे, चरणबद्ध हिस्सों में कार्यान्वित किया जाए, जिससे
निष्कर्ष
ग्रेट निकोबार परियोजना भारत के लिए एक अभूतपूर्व रणनीतिक और आर्थिक अवसर है, जो देश को हिंद महासागर में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी बना सकती है। हालाँकि, इस राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पारिस्थितिक अखंडता और जनजातीय अधिकारों की अनदेखी करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता के दृष्टिकोण से भी जोखिम भरा है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि 'विकसित भारत' का निर्माण करते समय, विकास का मार्ग "सुरक्षा, संप्रभुता और सततता" के सिद्धांतों पर संतुलित रूप से चले, ताकि यह परियोजना विनाश का नहीं, बल्कि जिम्मेदार विकास का एक वैश्विक मॉडल बन सके।