Read Current Affairs
- भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित ड्रोन रोधी प्रणाली भार्गवस्त्र का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
- भार्गवस्त्र के बारे में:
- भार्गवस्त्र एक किफायती, 'हार्ड किल' समाधान है जिसे विशेष रूप से ड्रोन झुंडों द्वारा उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (SDAL) द्वारा विकसित किया गया है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- दोहरी परत वाली रक्षा: पहली परत में 20 मीटर की प्रभावी त्रिज्या वाले गैर-निर्देशित माइक्रो-रॉकेट का उपयोग किया जाता है, ताकि एक साथ कई ड्रोन को निशाना बनाया जा सके। दूसरी परत में उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों को सटीक रूप से नष्ट करने के लिए निर्देशित माइक्रो-मिसाइलें होती हैं।
- पता लगाने की क्षमता: यह प्रणाली 2.5 किमी दूर तक ड्रोन का पता लगा सकती है, जबकि इसका रडार 6-10 किमी की सीमा के भीतर हवाई खतरों पर नज़र रखता है।
- उच्च ऊंचाई पर संचालन: 5,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर प्रभावी।
- मॉड्यूलर आर्किटेक्चर: इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और स्पूफिंग जैसी सॉफ्ट किल तकनीकों को जोड़ने का समर्थन करता है।
- C4I-सक्षम कमांड सेंटर: नेटवर्क-केंद्रित युद्ध वातावरण में निर्बाध एकीकरण की सुविधा प्रदान करता है।
- भारत की छठी सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकाई यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) क्षेत्र में जेवर हवाई अड्डे के पास स्थापित की जाएगी।
- यह परियोजना एचसीएल और फॉक्सकॉन के बीच एक संयुक्त उद्यम है और मोबाइल फोन, लैपटॉप और ऑटोमोटिव अनुप्रयोगों के लिए डिस्प्ले ड्राइवर चिप्स के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करेगी। यह भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत एक महत्वपूर्ण कदम है।
- भारत का सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम तेजी से बढ़ रहा है। घरेलू बाजार 2019 में 22 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 तक 110 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो वैश्विक खपत का 10% है।
- सेमीकंडक्टर घटकों की स्थानीय सोर्सिंग 2021 में 9% से बढ़कर 2026 तक 17% होने की उम्मीद है। दुनिया के 20% सेमीकंडक्टर डिज़ाइन इंजीनियरों के साथ, भारत सालाना 3,000 से अधिक आईसी डिज़ाइन करता है।
- सेमीकंडक्टर में निवेश से व्यापार घाटे और आयात निर्भरता को कम करने में मदद मिलती है - भारत ने 2024 में 1.71 लाख करोड़ रुपये के चिप्स का आयात किया।
- यह क्षेत्र रोजगार सृजन, उच्च तकनीक नवाचार को भी बढ़ावा देता है तथा आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन को मजबूत करता है।
- केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने 31वीं आईसीजीईबी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स मीटिंग के दौरान भारत की पहली सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित डीएसटी-आईसीजीईबी 'बायो-फाउंड्री' का उद्घाटन किया। यह अत्याधुनिक सुविधा भारत के जीवन विज्ञान अनुसंधान बुनियादी ढांचे में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
- 1983 में स्थापित इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) एक अग्रणी अंतर-सरकारी संगठन है, जिसके 69 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल है, जो इसका संस्थापक सदस्य है। ICGEB जीवन विज्ञान में अत्याधुनिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करता है और नई दिल्ली (भारत), ट्राइस्टे (इटली) और केप टाउन (दक्षिण अफ्रीका) में स्थित तीन प्रमुख केंद्रों के माध्यम से संचालित होता है।
- संगठन की शोध प्राथमिकताएँ संक्रामक रोग, गैर-संचारी रोग, चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी, औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी और पादप जैव प्रौद्योगिकी तक फैली हुई हैं। हाल ही में शुरू की गई बायो-फाउंड्री का उद्देश्य सदस्य देशों के वैज्ञानिकों के लिए उन्नत उपकरण और सहयोगी अवसर प्रदान करके इन क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार को गति देना है।